बिहार चुनाव को निशाना बनाकर रांची में एकजुट हुए विपक्ष के नेता। हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में अपने दो मुख्यमंत्रियों के साथ पहुंचे राहुल गांधी। राष्ट्रीय राजनीति में अशोक गहलोत का महत्व और बढ़ा

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बिहार चुनाव को निशाना बनाकर रांची में एकजुट हुए विपक्ष के नेता। हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में अपने दो मुख्यमंत्रियों के साथ पहुंचे राहुल गांधी। राष्ट्रीय राजनीति में अशोक गहलोत का महत्व और बढ़ा
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2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को निशाना बनाकर 29 दिसंबर को विपक्षी दलों के नेता रांची में एकजुट हुए। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी दलों के नेताओं ने एकजुटता दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बिहार को तोड़कर बने झारखंड के हाल ही के चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और आरजेडी के गठबंधन को बहुमत मिला है। यही वजह रही कि 21 विधायकों वाले झारखंड के मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी उपस्थित रही। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी अपने दो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (राजस्थान) और भूपेश बघेल (छत्तीसगढ़) के साथ मंच पर पहुंचे। कांग्रेस इसलिए भी गद्गद् है कि झारखंड को भी भाजपा से छीन लिया है। हालांकि झारखंड में आरजेडी को मात्र एक सीट मिली है, लेकिन आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव भी मंच पर पहली पंक्ति में बैठे हुए थे। 2020 में बिहार में तथा 2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा के चुनाव होने है। बिहार में फिलहाल नितीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू और भाजपा की सरकार चल रही है। विपक्षी दलों का प्रयास है कि अब बिहार को भी भाजपा से छीन लिया जाए। हालांकि अभी तक नितीश कुमार के इरादों के बारे में जानकारी स्पष्ट नहीं हुई है, लेकिन 29 दिसंबर को हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में मंच पर ही ममता बनर्जी और लेफ्ट के बड़े नेता वी.राजा के बीच लंबी चर्चा हुई। अभी यह तो नहीं कहा जा सकता कि विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी लेफ्ट के साथ कोई समझौता करेंगी। लेकिन भाजपा को दूर रखने के लिए पश्चिम बंगाल में कुछ भी हो सकता है। पांच माह पहले हुए लोकसभा के चुनाव में भाजपा को 42 में से 18 सीटें बंगाल में मिली है। जबकि ममता बनर्जी की टीएमसी को 22 सीटें ही मिल पाई। लोकसभा चुनाव लेफ्ट और टीएमसी ने अलग-अलग लड़ा था। अब चूंकि बंगाल में भाजपा का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है इसलिए टीएमसी और वामपंथी दलों मेें गठबंधन की चर्चाएं चल रही है। देखना होगा कि जो ममता बनर्जी 30 वर्ष पुराने लेफ्ट के किले को ढहा कर मुख्यमंत्री बनी थी क्या वह अपनी सरकार बचाने के लिए वामपंथी दलों के साथ समझौता करेंगी? 29 दिसंबर को हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी दलों के नेताओं ने एकजुटता दिखाकर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को भी संकेत दिए हैं। अब भाजपा और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट किया जा रहा है। यह बात अलग है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों की स्थिति बेहद कमजोर रही है। जहां भाजपा को अकेले दम पर 303 सीटें मिली, वहीं एनडीए गठबंधन को 545 में से 350 सीटें प्राप्त हुई थी यानि पूरा विपक्ष 100 सीटों पर सीमित रह गया। कांग्रेस को मात्र 52 सीटें मिली थी। लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र और झारखंड भाजपा के हाथ से निकल चुका है अब विपक्षी दलों का निशाना बिहार पर है। देखना है कि विपक्ष की एकजुटता का नुकसान भाजपा को कितना होता है। 
एस.पी.मित्तल) (29-12-19)
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