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दिल्ली के अग्निकांड के दौरान शवों और घायलों को ऑटो में ले जाया गया अस्पताल। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित अनेक वीआईपी के घरों के बाहर बेकार खड़ी रहीं एम्बुलेंस। आखिर किस काम का है ऐसा लोकतंत्र।
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8 दिसंबर की तड़के देश की राजधानी दिल्ली के फिल्मिस्तान इलाके में जो भीषण अग्निकांड हुआ, उसमें करीब 50 व्यक्तियों की दम घुटने से मौत हो गई। अग्निकांड को लेकर जांच और आरोप प्रत्यारोपों का दौर चलता रहेगा, लेकिन 50 लोगों की मौत वाली इस घटना का एक महत्वपूर्ण मुद्दा दिल्ली में एम्बुलेंसों का नहीं मिलना है। आग बुझाने पहुंचे फायर बिग्रेड के कर्मचारियों ने अपनी जान जोखिम में डाल कर कई घायलों को भी इमारत से बाहर निकाला, लेकिन घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस नहीं थी। ऐसे में ऑटो रिक्शा में ही शवों और घायलों को अस्पताल ले जाया गया। यदि मौके पर एम्बुलेंस होती तो कई घायलों की जान बचाई जा सकती थी। फायर बिग्रेड के अधिकारियों का भी मानना है कि यदि एम्बुलेंस में प्राथमिक उपचार मिल जाता तो अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में मौत नहीं होती। ऑटो रिक्शा के मुकाबले एम्बुलेंस में घायलों को जल्द अस्पताल पहुंचाया जा सकता था। फायर बिग्रेड के अधिकारियों ने पुलिस को सूचना देकर एम्बुलेंस मंगवाने की मांग की थी, लेकिन फिर भी एम्बुलेंस नहीं आई। दिल्ली कोई गांव-ढाणी नहीं है, जहां एम्बुलेंस पहुंचने में समय लगे। दिल्ली विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारती की राजधानी है। दिल्ली में ऐसे अनेक वीआईपी निवास करते हैं, जिनके घरों के बाहर अत्याधुनिक एम्बुलेंस खड़ी रहती हैं। 8 दिसंबर को अग्निकांड के दौरान ही कांग्रेस की विधायक अलका लाम्बा ने बताया कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर के बाहर खड़ी एम्बुलेंस को मंगाने का सुझाव उन्होंने दिल्ली सरकार के अफसरों को दिया था, लेकिन किसी ने भी केजरीवाल के घर के बाहर बेकार खड़ी एम्बुलेंस को घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए नहीं मंगवाया। उधर एम्बुलेंस मुख्यमंत्री के प्रोटोकाल में खड़ी रही, इधर घायल दम तोड़ते रहे। ऐसा नहीं कि सिर्फ अरविंद केजरीवाल के घर के बाहर ही एम्बुलेंस खड़ी होती है। दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के निवास स्थान पर सरकारी एम्बुलेंस प्रोटोकॉल में खड़ी रहती है। इसे लोकतंत्र की विडम्बना ही कहा जाएगा कि एक ओर नेताओं के घरों के बाहर एम्बुलेंस सिर्फ प्रोटोकॉल में खड़ी रहती है तो दूसरी ओर घायलों को ऑटो रिक्शा में अस्पताल ले जाया जाता है। जबकि आम जनता के वोट से ही नेता इतने ताकवतर होते हैं कि घर के बाहर एम्बुलेंस खड़ी हो सके। अब वे राजनेता भी 50 मौतों पर आसूं बहा रहे हैं, जिनके घरों के बाहर एम्बुलेंस खड़ी है। अच्छा होता कि ऐसे राजनेता अपनी तरफ से पहल कर एम्बुलेंस को अग्निकांड वाले स्थल पर पहुंचा देते। कांग्रेस की नेता अलका लाम्बा को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर के बाहर खड़ी एम्बुलेंस तो नजर आ रही है, लेकन अपनी पार्टी की श्रीमती सोनया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के घरों पर खड़ी एम्बुलेंस नजर नहीं आतीं। राजनीति में सबका चरित्र एकसा है।
एस.पी.मित्तल) (08-12-19)
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