पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के प्रताडि़त हिन्दुओं को हिन्दुस्तान में नागरिकता क्यों नहीं मिले? क्या मुस्लिम देश में कोई मुसलमान अत्याचार का शिकार हो सकता है? 

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पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के प्रताडि़त हिन्दुओं को हिन्दुस्तान में नागरिकता क्यों नहीं मिले? क्या मुस्लिम देश में कोई मुसलमान अत्याचार का शिकार हो सकता है? 
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9 दिसंबर को लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पेश हो गया। विपक्ष के विरोध और जिद्द के चलते बिल प्रस्तुत करने पर भी मत विभाजन करवाया गया। बिल प्रस्तुत करने के पक्ष में 293 तथा विरोध मे 82 मत आए यानि अब इस बिल पर लोकसभा में चर्चा हो सकेगी। सवाल उठता है कि कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दल इस बिल का विरोध क्यों कर रहे है? सब जानते हैं कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध आदि समुदाय के नागरिकों के विरूद्व अत्याचार होते हैं। पाकिस्तान में तो हिन्दुओं और सिखों की लड़कियों से जबरन निकाह करने की खबरें आए दिन आती हैं। ऐसे में इन परिवारों का पाकिस्तान में रहना दूभर हो गया है। यह भी सब जानते हैं कि 1947 में देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था। पाकिस्तान तो मुस्लिम राष्ट्र बन गया लेकिन भारत को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनाया गया यानि यहां पर मुसलमान और अन्य जातियों के लोग अपने धर्म के अनुरूप रह सकते हैं। किसी भी धर्म को मानने वाले के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है। सवाल उठता है कि जब धर्म के आधार पर पाकिस्तान को मुस्लिम राष्ट्र माना गया तो फिर भारत को धर्म आधारित राष्ट्र क्यों नहीं बनाया गया? 70 वर्ष पहले देश के जो हालात थे, वैसे ही अब बनते जा रहे है। चूंकि पाकिस्तान, बांग्लोदश, अफगानिस्तान मुस्लिम राष्ट्र है इसलिए हिन्दू, ईसाई, सिख, बौद्ध समुदाय के लोग अपने धर्म के अनुरूप वहां नहीं रह सकते हैं। क्या ऐसे समुदायों के लोगों को भारत में नागरिकता नहीं मिलनी चाहिए? सरकार जो नागरिकता संशोधन बिल लाई है, उसमें ऐसे प्रताडि़त परिवारों के सदस्यों को ही नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। हालांकि पूर्व में 11 वर्ष की अवधि का प्रावधान है, लेकिन अब इसे घटाकर 6 वर्ष की अवधि का किया गया है यानि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धर्म के आधार पर प्रताडि़त होकर आए हिन्दू, ईसाई, सिख और बौद्ध समुदाय के जो लोग हिन्दुस्तान में 6 वर्षों से शरणार्थी बनकर रह रहे हैं, उन्हें अब भारत की नागरिकता मिल जाएगी। समझ में नहीं आता कि ऐसे परिवारों को नागरिकता देने पर विपक्ष को एतराज क्यों है। बार-बार यह कहा जा रहा है कि इसमें मुस्लिम शरणार्थियों को शामिल नहीं किया गया है। सवाल उठता है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में क्या किसी मुसलमान पर धर्म के आधार पर अत्याचार हो रहा है? जब इन तीनों देशों में मुस्लिम धर्म के अनुरूप ही रहने का कानून है तो फिर इन देशों में मुसलमानों पर अत्याचार का सवाल ही नहीं उठता, लेकिन इसके बावजूद भी विपक्षी दल इन तीनों देशों के मुस्लिम नागरिकों को हिन्दुस्तान में नागरिकता दिलवाने के पक्ष में है। सब जानते हैं कि पाकिस्तान भारत में आतंकियों को भेजकर हिंसक घटनाएं करवाता है। सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान से आए आतंकवादियों को भारत की नागरिकता दे दी जाए? भारत में विभाजन के बाद से ही मुसलमान बड़ी संख्या में रह रहे हैं और विभाजन के समय रहने वाले मुसलमानों को नागरिकता भी मिली हुई है। भारत में किसी भी मुसलमान के साथ भेदभाव नहीं किया जाता। जो अधिकार हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध नागरिकों को मिले हुए हैं, वही अधिकार मुसलमानों को भी प्राप्त है। जब देश में करीब 25 करोड़ मुसलमानों के साथ कोई भेदभाव नहीं हो रहा तो फिर नागरिकता संशोधन बिल को लेकर मुसलमानों के साथ भेदभाव का आरोप लगाना पूरी तरह गलत है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुसलमानों के मुकाबले में हिन्दुस्तान में रहने वाले मुसलमान ज्यादा ऐशो-आराम और सुकून के साथ रह रहे हैं। यह भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती है कि यहां हिन्दू और मुसलमान दोनों नागरिकों को समान अधिकार है। विपक्ष को विरोध करना है तो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान की नीतियों का विरोध करना चाहिए जहां धर्म के आधार पर हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध आदि समुदायों के साथ भेदभाव होता है। 
एस.पी.मित्तल) (09-12-19)
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