फारुख अब्दुल्ला की नजरबंदी खत्म, जल्द रिहाई।
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वेणुगोपाल और नीरज डांगी की उम्मीदवारी से कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट नाखुश।
राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत कर एक झटके में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को खतरे में डाल दिया है। अब कभी भी कमलनाथ सरकार की विदाई हो सकती है। सिंधिया की बगावत के साथ ही राजनीतिक पंडितों की नजर सबसे पहले राजस्थान में सचिन पायलट पर गई। हालांकि पायलट राजस्थान में सिंधिया की तरह एकदम उपेक्षित नहीं हैं, लेकिन अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से खुश भी नहीं हैं। 12 मार्च को राज्यसभा के चुनाव में जिन दो उम्मीदवार वेणुगोपाल और नीरज डांगी की घोषणा की गई, उससे पायलट नाखुश बताए जा रहे हैं। सब जानते हैं कि दिसम्बर 2018 में कांग्रेस विधायक दल का नेता चुनने के समय वेणुगोपाल ही कांग्रेस हाईकमान के पर्यवेक्षक बन कर जयपुर आए थे। नेता पद पर पायलट की मजबूत दावेदारी थी, लेकिन वेणुगोपाल की गतिविधियों की वजह से अशोक गहलोत को ही नेता घोषित किया गया। यानि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने से वंचित हो गए। भले ही वेणुगोपाल की उम्मीदवारी में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी का भी दबाव रहा हो, लेकिन फिलहाल तो यही माना जा रहा है कि अशोक गहलोत ने राजनीतिक कर्जा उतार दिया है। दूसरे उम्मीदवार नीरज डांगी तीन बार रेवदर (पाली) से विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। पायलट चाहते थे कि संगठन के उस व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया जाए, जिसने भाजपा के शासन में संघर्ष किया। लेकिन पायलट के सुझाव को दरकिनार कर अशोक गहलोत की सिफारिश पर डांगी को उम्मीदवार घोषित किया गया। 13 मार्च को दोनों उम्मीदवारों के नामांकन के समय जयपुर में सचिन पायलट उपस्थित तो थे, लेकिन उनके चेहरे से साफ लग रहा था कि वे खुश नहीं हैं। प्रदेशाध्यक्ष की हैसियत से भी नामांकन की प्रक्रिया में पायलट की कोई भूमिका नहीं रही। नामांकन से पहले दोनों उम्मीदवार प्रदेश कांग्रेस कार्यालय भी नहीं गए। नामांकन की सारी प्रक्रिया मुख्यमंत्री के कैम्प ने ही पूरी की।
लखावत के नामांकन से खलबली:
राजस्थान से राज्यसभा के लिए तीन उम्मीदवारों का चयन होना है। 12 मार्च को कांग्रेस ने जहां केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी को उम्मीदवार घोषित किया, वहीं भाजपा ने राजेन्द्र गहलोत को उम्मीदवार बनाया। लेकिन 13 मार्च को नामांकन के अंतिम दिन भाजपा ने राज्यसभा के पूर्व सदस्य औंकार सिंह लखावत का भी नामांकन करवा दिया। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि भाजपा ने दो उम्मीदवार उतारे हैं और दोनों की जीत होगी। जाहिर है कि अब कांग्रेस के विधायकों में सेंधमारी होगी। राजस्थान में 200 विधायक हैं, ऐसे में जीत के लिए प्रथम वरीयता के 51 वोट चाहिए। यदि तीन उम्मीदवार होते तो निर्विरोध चुनाव हो जाता, लेकिन अब चौथे उम्मीदवार के तौर पर लखावत ने भी नामांकन कर दिया है, ऐसे 26 मार्च को चुनाव होंगे। भाजपा के पास फिलहाल स्वयं के 72 तथा 3 विधायक हनुमान बेनीवाल की आरएलपी के हैं। यानि भाजपा को अपना दूसरा उम्मीदवार जितवाने के लिए कांग्रेस में तोडफ़ोड़ करनी होगी। कांग्रेस अपने 106 विधायकों के साथ 13 निर्दलियों तथा दो बीटीपी व दो सीपीएम के विधायकों को भी अपना मानती है। यह वक्त बताएगा कि भाजपा कांग्रेस के कितने विधायक किस तरह तोड़पाती है।
फारुख अब्दुल्ला की जल्द रिहाई।
सब जानते हैं कि राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला के बीच पारिवारिक संबंध हैं। चूंकि पायलट ने फारुख अब्दुल्ला की पुत्री सारा अब्दुल्ला के साथ विवाह किया है इसलिए रिश्ते में फारुख अब्दुल्ला सचिन पायलट के ससुर लगते हैं। 13 मार्च को अचानक खबर आई कि जम्मू कश्मीर प्रशासन ने फारुख अब्दुल्ला पर से पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) को हटा लिया है। साथ ही अब्दुल्ला की नजरबंदी भी समाप्त कर दी है। यानि अब फारुख अब्दुल्ला जल्द ही रिहा हो जाएंगे। फारुख अब्दुल्ला को गत 15 सितम्बर से नजरबंद कर रखा था। फारुख अब्दुल्ला रिहा होने वाले हैं, इसकी भनक किसी को भी नहीं थी। अपने पिता की रिहाई के लिए सारा अब्दुल्ला पायलट ने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की थी। लेकिन इस याचिका का जम्मू कश्मीर और केन्द्र सरकार ने पुरजोर विरोध किया। सरकार की ओर से कहा गया कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर में लगातार शांति कायम हो रही है ऐसे में फारुख अब्दुल्ला को रिहा कर कोई जोखिम नहीं लिया जा सकता है। यानि कल तक फारुख अब्दुल्ला की रिहाई का विरोध किया जा रहा था, लेकिन 13 मार्च को अचानक फारुख अब्दुल्ला पर से पीएसए जैसा एक्ट हटा लिया गया है। स्वाभाविक है कि इसके राजनैतिक परिणाम जल्द सामने आएंगे। पूर्व में यह माना जा रहा था कि सचिन पायलट की राजनीति में अब्दुल्ला परिवार की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अब चूंकि केन्द्र सरकार के अब्दुल्ला परिवार के साथ तालमेल हो रहा है, इसलिए सचिन पायलट की भूमिका के बारे में फिलहाल कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। सब जानते हैं कि वर्ष 2013 से लेकर 2018 तक राजस्थान में कांग्रेस को मजबूत करने में पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 21 सीटें मिली थी। लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 100 तक पहुंच गई। कांग्रेस की स्थिति को मजबूत करने का श्रेय पायलट को ही दिया गया। लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने मुख्यमंत्री के पद पर पायलट का दावा दरकिनार कर अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया। यही वजह रही कि सरकार में डिप्टी सीएम बनने के बाद भी पायलट ने कई अवसरों पर कांग्रेस सरकार की आलोचना की। हाल ही में मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत पर भी पायलट ने बहुत ठंडी प्रतिक्रिया दी। पायलट का कहना रहा कि सिंधिया को पार्टी के अंदर ही अपनी बात रखनी चाहिए थी। सिंधिया की बगावत के लिए पायलट ने भाजपा को दोषी नहीं माना, जबकि सीएम अशोक गहलोत ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि भाजपा वाले राजनीति का नंगा नाच कर रहे हैं और विधायकों को खरीद कर एक चुनी हुई सरकार को अस्थिर किया जा रहा है।
वेणुगोपाल और नीरज डांगी की उम्मीदवारी से कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट नाखुश।
राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत कर एक झटके में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को खतरे में डाल दिया है। अब कभी भी कमलनाथ सरकार की विदाई हो सकती है। सिंधिया की बगावत के साथ ही राजनीतिक पंडितों की नजर सबसे पहले राजस्थान में सचिन पायलट पर गई। हालांकि पायलट राजस्थान में सिंधिया की तरह एकदम उपेक्षित नहीं हैं, लेकिन अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से खुश भी नहीं हैं। 12 मार्च को राज्यसभा के चुनाव में जिन दो उम्मीदवार वेणुगोपाल और नीरज डांगी की घोषणा की गई, उससे पायलट नाखुश बताए जा रहे हैं। सब जानते हैं कि दिसम्बर 2018 में कांग्रेस विधायक दल का नेता चुनने के समय वेणुगोपाल ही कांग्रेस हाईकमान के पर्यवेक्षक बन कर जयपुर आए थे। नेता पद पर पायलट की मजबूत दावेदारी थी, लेकिन वेणुगोपाल की गतिविधियों की वजह से अशोक गहलोत को ही नेता घोषित किया गया। यानि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने से वंचित हो गए। भले ही वेणुगोपाल की उम्मीदवारी में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी का भी दबाव रहा हो, लेकिन फिलहाल तो यही माना जा रहा है कि अशोक गहलोत ने राजनीतिक कर्जा उतार दिया है। दूसरे उम्मीदवार नीरज डांगी तीन बार रेवदर (पाली) से विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। पायलट चाहते थे कि संगठन के उस व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया जाए, जिसने भाजपा के शासन में संघर्ष किया। लेकिन पायलट के सुझाव को दरकिनार कर अशोक गहलोत की सिफारिश पर डांगी को उम्मीदवार घोषित किया गया। 13 मार्च को दोनों उम्मीदवारों के नामांकन के समय जयपुर में सचिन पायलट उपस्थित तो थे, लेकिन उनके चेहरे से साफ लग रहा था कि वे खुश नहीं हैं। प्रदेशाध्यक्ष की हैसियत से भी नामांकन की प्रक्रिया में पायलट की कोई भूमिका नहीं रही। नामांकन से पहले दोनों उम्मीदवार प्रदेश कांग्रेस कार्यालय भी नहीं गए। नामांकन की सारी प्रक्रिया मुख्यमंत्री के कैम्प ने ही पूरी की।
लखावत के नामांकन से खलबली:
राजस्थान से राज्यसभा के लिए तीन उम्मीदवारों का चयन होना है। 12 मार्च को कांग्रेस ने जहां केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी को उम्मीदवार घोषित किया, वहीं भाजपा ने राजेन्द्र गहलोत को उम्मीदवार बनाया। लेकिन 13 मार्च को नामांकन के अंतिम दिन भाजपा ने राज्यसभा के पूर्व सदस्य औंकार सिंह लखावत का भी नामांकन करवा दिया। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि भाजपा ने दो उम्मीदवार उतारे हैं और दोनों की जीत होगी। जाहिर है कि अब कांग्रेस के विधायकों में सेंधमारी होगी। राजस्थान में 200 विधायक हैं, ऐसे में जीत के लिए प्रथम वरीयता के 51 वोट चाहिए। यदि तीन उम्मीदवार होते तो निर्विरोध चुनाव हो जाता, लेकिन अब चौथे उम्मीदवार के तौर पर लखावत ने भी नामांकन कर दिया है, ऐसे 26 मार्च को चुनाव होंगे। भाजपा के पास फिलहाल स्वयं के 72 तथा 3 विधायक हनुमान बेनीवाल की आरएलपी के हैं। यानि भाजपा को अपना दूसरा उम्मीदवार जितवाने के लिए कांग्रेस में तोडफ़ोड़ करनी होगी। कांग्रेस अपने 106 विधायकों के साथ 13 निर्दलियों तथा दो बीटीपी व दो सीपीएम के विधायकों को भी अपना मानती है। यह वक्त बताएगा कि भाजपा कांग्रेस के कितने विधायक किस तरह तोड़पाती है।
फारुख अब्दुल्ला की जल्द रिहाई।
सब जानते हैं कि राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला के बीच पारिवारिक संबंध हैं। चूंकि पायलट ने फारुख अब्दुल्ला की पुत्री सारा अब्दुल्ला के साथ विवाह किया है इसलिए रिश्ते में फारुख अब्दुल्ला सचिन पायलट के ससुर लगते हैं। 13 मार्च को अचानक खबर आई कि जम्मू कश्मीर प्रशासन ने फारुख अब्दुल्ला पर से पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) को हटा लिया है। साथ ही अब्दुल्ला की नजरबंदी भी समाप्त कर दी है। यानि अब फारुख अब्दुल्ला जल्द ही रिहा हो जाएंगे। फारुख अब्दुल्ला को गत 15 सितम्बर से नजरबंद कर रखा था। फारुख अब्दुल्ला रिहा होने वाले हैं, इसकी भनक किसी को भी नहीं थी। अपने पिता की रिहाई के लिए सारा अब्दुल्ला पायलट ने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की थी। लेकिन इस याचिका का जम्मू कश्मीर और केन्द्र सरकार ने पुरजोर विरोध किया। सरकार की ओर से कहा गया कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर में लगातार शांति कायम हो रही है ऐसे में फारुख अब्दुल्ला को रिहा कर कोई जोखिम नहीं लिया जा सकता है। यानि कल तक फारुख अब्दुल्ला की रिहाई का विरोध किया जा रहा था, लेकिन 13 मार्च को अचानक फारुख अब्दुल्ला पर से पीएसए जैसा एक्ट हटा लिया गया है। स्वाभाविक है कि इसके राजनैतिक परिणाम जल्द सामने आएंगे। पूर्व में यह माना जा रहा था कि सचिन पायलट की राजनीति में अब्दुल्ला परिवार की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अब चूंकि केन्द्र सरकार के अब्दुल्ला परिवार के साथ तालमेल हो रहा है, इसलिए सचिन पायलट की भूमिका के बारे में फिलहाल कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। सब जानते हैं कि वर्ष 2013 से लेकर 2018 तक राजस्थान में कांग्रेस को मजबूत करने में पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 21 सीटें मिली थी। लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 100 तक पहुंच गई। कांग्रेस की स्थिति को मजबूत करने का श्रेय पायलट को ही दिया गया। लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने मुख्यमंत्री के पद पर पायलट का दावा दरकिनार कर अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया। यही वजह रही कि सरकार में डिप्टी सीएम बनने के बाद भी पायलट ने कई अवसरों पर कांग्रेस सरकार की आलोचना की। हाल ही में मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत पर भी पायलट ने बहुत ठंडी प्रतिक्रिया दी। पायलट का कहना रहा कि सिंधिया को पार्टी के अंदर ही अपनी बात रखनी चाहिए थी। सिंधिया की बगावत के लिए पायलट ने भाजपा को दोषी नहीं माना, जबकि सीएम अशोक गहलोत ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि भाजपा वाले राजनीति का नंगा नाच कर रहे हैं और विधायकों को खरीद कर एक चुनी हुई सरकार को अस्थिर किया जा रहा है।
(एस.पी.मित्तल) (13-03-2020)
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